The Unadorned

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Thursday, March 07, 2013

एक छोटा-सा ब्रेक, प्रवचन के लिए

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And now something sanctimonious. Or rather sanctimonious rubbish. I wonder if it is at all necessary in this modern world. Who needs to be told what is good and what is not? Everybody knows that. Still it sells, sells like hot cake. Some even earn their livelihood by this. There is a higher level from where words of wisdom can be uttered and to do that one has to look down upon the listeners from that level only. Sanctimonious utterances are undemocratic utterances. Exhibiting a kind of holier-than-thou attitude.
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एक छोटा-सा ब्रेक, प्रवचन के लिए 

आजकल हर कहीं प्रवचनों की होड़ लगी है सबको दूसरों के हित में कुछ कहना है सुबह होते ही यह-करो-यह-न-करो की आवाज टीवी चैनेलों में गूंजती रहती है बावा सजधज कर गद्देवाली कुर्सी पर आसीन होते हैं और ज्ञान की गुलेल फेंकते रहते हैं ऐसे में अगर किसीको अनौपचारिक तौर पर कुछ कहना है यानी घरेलू सीख देनी है तो लोग उसे कहते हैं, ‘क्यों भई, इधर क्यों? जाओ, जो कहना है, टीवी चैनलों में कहो सतसंग का आयोजन करो, किसी कम्पनी को पकड़ो और वह उसका खर्चा उठाएगा अच्छी बात कहने के लिए पहले अच्छे प्लेटफार्मों की तलाश तो करो सुननेवाले बेशक मिल जाएँगे 

प्लेटफार्म के अतिरिक्त, प्रभावी होने के लिए प्रवचन ऐसा होना चाहिए जो सुननेवालों को झकझोर दे—वह सिर्फ एक क्षण के लिए क्यों न होकोई ज़रूरी नहीं कि वह जो भी छाप छोड़ेगा, यह बिलकुल चिरस्थाई हो। एक मायने में वह ‘आफ्टर-शेव लोशन’ जैसा होना चाहिए यानी उससे अब-जलन-अब-ठण्डक का अहसास निकलना चाहिए यानी प्रवचन ऐसा हो जव उसे सुना जाए वह बिलकुल वैराग्य पैदा कर देता हो पर एक क्षण बीतने के उपरांत वह हवा में उड़ भी जाता हो। एक मिनट पहले सतसंग में पश्चाताप के आँसुओं से लतपत शख्स अगर घर लौटने के रास्ते में अपनी जेब में पड़े 500 रुपये के जाली नोट को जानबूझकर किसी भुलक्कड़ दुकानदार को थमा दे, वह फिर भी मान्य है।       

मैंने भी ऐसा एक लेख इन्टरनेट में कहीं पढ़ा था और अच्छा लगने पर उसकी एक प्रति फिर से पढ़ने के लिए संभाल कर रखी थी आज ‘हिम डाक सन्देश’ के लिए जब कुछ लिखने के लिए कहा गया तो सोचा क्यों न मैं उसका ही अनुवाद कर लूँ जो एक दिन मुझे अच्छा लगा था, और जिसे पढ़ने के तुरंत बाद भूल भी गया था, हो सकता है वह आज मेरे अपनों को भी अच्छा लगे इस प्रकार, जब प्लेटफार्म है और सुननेवाले हैं तो फिर किसी प्रवचन-जैसी बात तो कही जा सकती है न?

तो लीजिए, इसे पढ़ें और एक मिनट में भूल जाएँ:—

कभी खुद को दूसरों के साथ तुलना मत करो क्योंकि हम सब एक दूसरे से भिन्न हैं इसी भिन्नता की वजह से हमारी विशेषता उभर कर सामने आती है अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारण करने में उस पर मत जाएँ जिसे और लोग अहम् मानते हैं सिर्फ आप ही जानते हैं, क्या आपके लिए सर्वोत्तम है अपने दिल के सबसे करीब सिद्धांत को नज़रंदाज़ न करें उसको अपनी जान से ज्यादा समझ कर जकड कर रखें क्योंकि बग़ैर उसके आपकी जिंदगी अर्थहीन है अपने अतीत की टोकरी ढो कर तथा भविष्य में उलझ कर अपनी जिंदगी के अनमोल पलों को अपने सामने ओझल होते हुए न देखें हर एक दिन अपने हिसाब से जी कर आप अपनी पूरी जिंदगी सार्थक जी सकते हैं अगर कोशिश करने के लिए आपके पास अब भी कुछ बचा हुआ है तो फिर कोशिश करते रहिए सच में, कोशिश करते रहने से कुछ बिगड़ता नहीं है और मामला तब हाथ से निकला हुआ माना जाता है, जब कोई कोशिश करना ही बंद कर दे। कभी भी यह क़बूल करने में संकोच न करें कि आप दोषहीन नहीं है। यह एक ऐसी मुलायम डोर है, जो हमें एक दूसरे से जोड़ती है। यानी ‘sorry’ कहने से बड़े-से-बड़े सरदर्द अपनेआप गायब हो जाते हैं। कोई जोखिम उठाने से डरो मत। सिर्फ अनिश्चितता के बीच उद्यम कर आप हिम्मतवाला बन सकते हैं। केवल यह कहकर कि प्यार ढूँढ पाना मेरे लिए मुश्किल है, आप अपनी ज़िन्दगी से प्यार को दूर मत भगाइए। जल्द प्यार हासिल करने का आसान उपाय है प्यार बाँटना; प्यार गँवाने का पक्का रास्ता है प्यार को हद से अधिक जकड़ कर रखना; और प्यार को क़ायम रखने का बेहतरीन रास्ता है उसे उड़ान भरने देना। अपने सपनों की उपेक्षा न करो। सपना न होने का मतलब उम्मीद न होना; और उम्मीद न होने का मतलब इरादा न होना। ज़िन्दगी के सफ़र में इतनी तेजी से मत भागो कि आप न केवल यह जानने में असमर्थ होंगे कि अब कहाँ पहुँच गए हो, बल्कि यह भी भूल जाओगे कि आप की मंजिल किस तरफ़ है। ज़िन्दगी चूहा दौड़ नहीं है, बल्कि वह एक ऐसा सुहाबना सफ़र है, जिसमें हर कदम पर आनंद लेने के लिए काफी कुछ मौजूद है।

अतः अपनी-अपनी ज़िन्दगी जीएँ और भरपूर जीएँ।

और अब इन सारी बातों को भूलकर अपने-अपने काम में लग जाएँ।
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By
A N Nanda
Shimla
07-03-2013
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1 Comments:

Anonymous Anonymous said...

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